गुरुवार, 22 सितंबर 2011

कुर्सी और टोपी में फर्क

    अवनीश कुमार
एक बार एक बच्चे ने पूछा कि कुर्सी और टोपी में क्या फर्क है। वहां मौजूद सभी लोग बच्चे का मुंह देखने लगे। तभी एक आदमी ने बच्चे को समझाया कि बेटा अब इनमें कोई फर्क नहीं रह गया है। दोनों एक समान हैं। जिसके पास इन दोनों में से कोई एक भी हो तो उसकी पावर ही अलग ही होती है और जिसके पास यें नहीं होती है उसे कोई नहीं जानता है। कुर्सीके बारें में वैसे भी तुम बचपन से सुनते आ रहे हो। अपने देश में हर नेता चाहता है कि उसके पास कुर्सीहो। वो आदमी उस बच्चे को बता ही रहा था कि बच्चा बीच में ही बोलते हुए कहने लगा कि टोपी से क्या होता है। उस आदमी ने उसे फिर से समझाना शुरू किया कि टोपी भी कुर्सी की ही तरह होती है। यह कभी भाव बढा देती है और कभी भाव गिरा देती है। बच्चा सिर खुजलाने लगा। बच्चे को सिर खुजलाते देखकर उस आदमी ने उसे उदाहरण देकर समझाना शुरू किया और कहा कि देखो एक है हमारे गांधीवादी नेता की टोपी। जिनकी टोपी से पूरा देश हिल गया। उनकी टोपी की अहमियत ये थी कि जिसके पास वो टोपी है समझो उसके पास लालबत्ती है। कोई उसको रोक नहीं सकता। क्या नेता और क्या अफसर सबके सब इस टोपी के पीछे। तो हो गई ना टोपी भी कुर्सी के बराबर। बच्चे ने फिर उत्संुकतावश पूछा लेकिन टोपी से आदमी के भाव कैसे गिर जाते हैं। उस आदमी ने बच्चे को फिर से उदाहरण देकर समझाना शुरू किया कि एक हमारे नेताजी हैं। प्रधानमंत्रीजी बनने का ख्वाब पाले हुए हैं। नेताजी थे थोडा हिन्दूवादी। उन्होंने भी सोचा क्यों न चुनाव से पहले थोडा वजन कम कर लिया जाए। चुनावों में भागदौड ज्यादा करनी पडेगी। वजन कम हो जाएगा तो भागदौड में आसानी रहेगी। सो बैठ गये उपवास पर। धीरे-धीरे नेताजी के साथ हर धर्म के लोग जुडने लगे। सभी लोग मानने लगे कि नेताजी इस बार बदल गये हैं और वें हिन्दू मुसिलम सिख ईसाई सब भाई-भाई की नीती पर चल रहे हैं। अब जैसे ही नेताजी का उपवास खत्म हुआ हर धर्म के लोग उनके लिए उपहार लेकर आने लगे। कोई फूलमाला लेकर आया, तो कोई तलवार लेकर। हमारे एक मुल्लाजी को जाने क्या सूझा। अपनी जेब से टोपी निकालकर लगे नेताजी को पहनाने, लेकिन नेताजी तो नेताजी ठहरे। मुल्लाजीकी टोपी पहनने से साफ इंकार कर दिया। बेचारे मुल्लाजी तो अपना सा मुंह लेकर वहां से चलते बने।लेकिन दूसरी पार्टी वालों की नजर नेताजी की इस करतूत पर पडी तो उन्होंने तुरंत ही नेताजी को लपेटना शुरू कर दिया। नेताजी की किरकिरी होने लगी और नेताजी जो एकता का भाषण दे रहे थे,। उसकी भी हवा निकल गई। बच्चा थोडी देर तक तो चुप रहा। फिर बच्चा बोला-टोपी का कमाल तो मेरी समझ में आया। लेकिन अगर कूर्सी में पावर है तो हमारे प्रधानमंत्री के पास कूर्सी होने के बावजूद भी पावर क्यों नहीं है। बच्चे के इस सवाल पर वो आदमी चुपचाप वहां से खिसक लिया।

रविवार, 10 अप्रैल 2011

क्या जनलोकपाल विधेयक से भ्रष्टचारियों पर लगेगा अंकुश?


भष्टाचार के खिलाफ अब तक देश में तीन बडे आंदोलन हो चुके है। सबसे पहला आंदोलन 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के द्वारा चलाया गया था। यह आंदोलन बिहार में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ था। हालांकि यह आंदोलन संपूर्ण क्रांति के तौर पर फैला था। लेकिन इस आंदोलन का कितना असर पडा, यह हम सब बिहार की हालत देखकर समझ सकते हैं।
इसके बाद दूसरा आंदोलन विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा 1987 में चलाया गया था।यह बोफोर्स तोप सौदे के घोटाले से जुडा था। यह आंदोलन भी देश की आवाज बना था। बोफोर्स तोप के मामले में कुछ लोगों के नाम सामने आये, लेकिन बात वहीं की वहीं रही।बोफोर्स तोप घोटाले में किसी को कोई सजा नहीं हो पाई है और  अब यह केस काफी लंबा होने की वजह से बंद कर दिया गया।
तीसरा आंदोलन 5 अप्रैल 2011 को अन्ना हजारे ने किया। अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई और जन लोकपाल विधेयक बनाने की मांग लेकर अनशन पर बैठ गये। उनके साथ देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं स्वामी अग्निवेश, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, स्वामी रामदेव व श्री श्री रविशंकर भी इस मुहिम में शामिल हुए। धीरे-धीरे उनके साथ पूरा देश इस जंग में शामिल हो गया। भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहीम में लोगों को जोडने का सबसे बड़ा माध्यम सोशल साइटें  बनी। जनता के एक साथ इतनी बडी संख्या में जुडने से सरकार को झुकना पडा। गई और उन्होंने अन्ना हजारे की मांगों को मानते हुए जन लोकपाल विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक से लोगों को उम्मीदें तो बहुत है, पर देखना यह है कि इस विधेयक से लोगों को कितनी राहत मिलती है और क्या यह विधेयक अपनी कसौटी पर खरा उतर पाएगा ?

रविवार, 13 मार्च 2011

भारतीय ब्लॉग लेखक मंच: प्रेम हर किसी के अंदर है--- अवनीश कुमार

भारतीय ब्लॉग लेखक मंच: प्रेम हर किसी के अंदर है--- अवनीश कुमार

बदलता गायकी का सूर

  अवनीश कुमार
मैं एक दिन राहत फतेह अली खान का एक गाना सुन रहा था। गाना काफी अच्छा था और वह  इस समय काफी सुना भी जा रहा है। तभी अचानक मेरे पापा आ गये और मुझे कहने लगे तुम ये क्या सुन रहे हो। गाने तो हमारे समय में होते थे। जब मोहम्मद रफी, मुकेश, महेन्द्र कपूर जैसे गायक थे। जो पूरे दिल से किरदार के अंदर जाकर गाना गाते थे। मैं अपने पापा को कहने लगा कि मैं भी मानता हूं, वह महान गायक थे। उनकी आवाज में अलग रस था, लेकिन आज के गायक भी बेसुरे नहीं होते हैं। आज समय बदल रहा है।
मैं भी पहले उदित नारायण, सोनू निगम व कुमार शानू जैसे गायकों को सुनता था। मुझे लगता था कि यें रफी साहब व मुकेश के विकल्प बनकर आ गये हैं, लेकिन मेरी सोच गलत थी। क्योंकि कोई किसी की जगह नहीं ले सकता है। सबकी अपनी-अपनी शैली है और केवल उन्ही के लिए है। हां इतना जरूर होता है कि सबका अपना समय होता है और एक निश्चित समय के बाद उनकी जगह कोई ओर ले लेता है। आज समय यह है कि उदित नारायण व कुमार शानू के गाने हमें शायद ही आज की किसी फिल्म में सुनने को मिले। जबकि पहले कोई भी फिल्म एसी नहीं होती थी। जिनमें इनके द्वारा गाया गाना न हो। आज हम लोग शान, केके, कैलाश खेर व राहत फतेह अली खान जैसे गायकों को सुनते है। अगर हम देखें तो यें गायक बहुत ही अच्छा गा रहे है और इन्हें बहुत लोग पसंद भी करते हैं। यही बात गायिकाओं पर भी लागू होती है। हम गायिकाओं में देखें तो पहले अलका याज्ञनिक, कविता कृष्णामूर्ति व अनुराधा पौडवाल जैसी गायिकाओं का राज चलता था। पर अब लोग श्रेया घोषाल,ममता शर्मा व सुनिधि चौहान जैसी गायिकाओं को पसंद कर रहे हैं। हालांकि इन सबसे अलग अपवाद के रूप में जगजीत सिंह व आशा भोसले, लता मंगेशकर जैसे गायक भी हैं। जिन्हें लोग हर समय पसंद करते हैं।
 आज सूफी गायन का दौर चल रहा है औऱ लोग इसे पसंद कर रहे है। इसके बीच एक बात यह भी है कि आज लोग किसी भी गायक को ज्यादा दिन तक याद नहीं रखते हैं। पहले कुछ दिन तक हिमेश रेशमिया को लोग सुन रहे थे, तो अब राहत फतेह अली खान जैसे गायकों का जादू है। इसके अलावा पंजाबी गायकों ने भी लोगों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
यह एक ट्रेंड है जिसे हम सामाजिक बदलाव भी कह सकते है। लोगों की एक सोच होती है जो लगातार बदलती रहती है। हम सभी जानते हैं कि पहले के गायक महान गायक थे, लेकिन आज की नई पीढी शायद ही उनको सुनती हो। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि आज ज्यादा कंपीटिशन है औऱ हर गायक के पास कुछ अलग है। दूसरा यह भी हो सकता है कि आज उनके पास ज्यादा विकल्प है।

गुरुवार, 10 मार्च 2011

प्रेम सबके अंदर है।


अवनीश कुमार
प्रेम एक ऐसा शब्द जिसे हर कोई सुनता है और हर किसी के लिए इसके मायने भी अलग-अलग है। अगर हम अपनी मां के प्रेम के बारे में सोचें, तो उसका अलग आनन्द है, लेकिन अगर हम अपनी प्रेमिका के प्रेम के बारे में बात करते हैं, तो हमारी अलग सोच होती है। प्रेम को हम अलग-अलग रूप से देखते है।ईश्क और मोहब्बत करना प्रेम नहीं है।
प्रेम हर कोई करता है, सिर्फ औरत व पुरूष का संबंध ही प्रेम नहीं है। प्रेम किसी भी रूप में किसी से भी हो सकता है। मेरी नजर में प्रेम की एक परिभाषा है,किसी को भी सच्चाई, ईमानदारी,विश्वास, निस्वार्थ भाव से किसी का किसी को भी चाहना प्रेम हो सकता है।
प्रेम हर किसी से हो सकता है। पृथ्वी पर उपस्थित या पृथ्वी से बाहर की किसी भी जीव व वस्तु के प्रति सम्मोहन प्रेम हो सकता है। प्रेम किसी से लेने का नहीं देने का नाम होता है। इसी तरह यदि हम वृक्षों को बचाने के बारे में सोचते है, तो उनके प्रति यह हमारा प्रेम है। लेकिन आजकल प्रेम के मायने बदल गये हैं। हमारे जीवन से प्रेम गायब होता जा रहा है। हम लोगों में से ज्यादातर लोग प्रेम को केवल स्त्री-पुरूष के संबंध में देखते हैं, लेकिन यह बिल्कुल निरर्थक सोच है। हम अपने घर पर कोई भी जानवर पालते हैं, उसकी हम सेवा करते है। वह भी प्रेम का ही एक रूप है। हम भगवान को मानते व पूजते है, वह भी प्रेम का ही एक रुप है। हम अपने बच्चों व परिवार से प्रेम करते है। वह प्रेम है, हम अपने दोस्तों का महत्तव अपनी जिन्दगी में समझते है। वह भी प्रेम है।अगर हम देखें तो हमारा पूरा जीवन प्रेम से भरा हुआ है। बस हमें इसे पहचानने की जरूरत है।

प्रेम सबके अंदर है।


अवनीश कुमार
प्रेम एक ऐसा शब्द जिसे हर कोई सुनता है और हर किसी के लिए इसके मायने भी अलग-अलग है। अगर हम अपनी मां के प्रेम के बारे में सोचें, तो उसका अलग आनन्द है, लेकिन अगर हम अपनी प्रेमिका के प्रेम के बारे में बात करते हैं, तो हमारी अलग सोच होती है। प्रेम को हम अलग-अलग रूप से देखते है।ईश्क और मोहब्बत करना प्रेम नहीं है।
प्रेम हर कोई करता है, सिर्फ औरत व पुरूष का संबंध ही प्रेम नहीं है। प्रेम किसी भी रूप में किसी से भी हो सकता है। मेरी नजर में प्रेम की एक परिभाषा है,किसी को भी सच्चाई, ईमानदारी,विश्वास, निस्वार्थ भाव से किसी का किसी को भी चाहना प्रेम हो सकता है।
प्रेम हर किसी से हो सकता है। पृथ्वी पर उपस्थित या पृथ्वी से बाहर की किसी भी जीव व वस्तु के प्रति सम्मोहन प्रेम हो सकता है। प्रेम किसी से लेने का नहीं देने का नाम होता है। इसी तरह यदि हम वृक्षों को बचाने के बारे में सोचते है, तो उनके प्रति यह हमारा प्रेम है। लेकिन आजकल प्रेम के मायने बदल गये हैं। हमारे जीवन से प्रेम गायब होता जा रहा है। हम लोगों में से ज्यादातर लोग प्रेम को केवल स्त्री-पुरूष के संबंध में देखते हैं, लेकिन यह बिल्कुल निरर्थक सोच है। हम अपने घर पर कोई भी जानवर पालते हैं, उसकी हम सेवा करते है। वह भी प्रेम का ही एक रूप है। हम भगवान को मानते व पूजते है, वह भी प्रेम का ही एक रुप है। हम अपने बच्चों व परिवार से प्रेम करते है। वह प्रेम है, हम अपने दोस्तों का महत्तव अपनी जिन्दगी में समझते है। वह भी प्रेम है।अगर हम देखें तो हमारा पूरा जीवन प्रेम से भरा हुआ है। बस हमें इसे पहचानने की जरूरत है।